भगवान् सिंह ग्राम – सेराघाट जिला अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से हैं. सेराघाट, सरयू नदी की एक घाटी है. वे बता रहे हैं कि गाँव के लिए प्राथमिक और मिडिल स्कूल दो से ढाई किलोमीटर की दूरी पर पव्वाधार में है. यहाँ पिछले साल आपदा हुई थी. बारिश का पानी घर अन्दर जाने से तीन मकान गिर गए. इनका कहना है कि कई लोगों को दो-दो लाख मुआवज़ा मिला जबकि इनको सिर्फ 5000 रुपये मुआवजा मिला. धान, गेहूं, मक्का, मंडवा और बाजरा की खेती होती है. हरेला,उसाड़ी और दीवाली एक दिन का त्यौहार साल भर में मानते है
सिदांग, माईग्रेशन गाँव की आपदा से क्षति और उनकी मांग
मेरा नाम अमर सिंह, उम्र 38 वर्ष। मैं ग्राम-पंचायत -सिदांग का सरपंच और तहसील-धारचूला, जिला-पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) का रहने वाला हूँ। हमारे ग्राम-सिदांग में एक समस्या है। यहाँ पर भू-स्खलन हो चुका है। यहाँ पहाड़ के कटान होने से गाँव में खतरा भी हो सकता है। हमारा गांव एक माइग्रेशन गांव है। यहां एक नदी आती है उसका भु-कटाव बहुत ज्यादा हो रहा है। वहां पर रहने वाले लोंगो को बहुत जयादा समस्यायें हो रही है। इसके बारे में ग्राम-पंचायत के माध्यम से आवेदन उत्तराखंड सरकार को बहुत बार किया लेकिन उस पर अनदेखी की गई। अभी तक उसका कोई जबाब नहीं आया। ऐसे ही कई वर्ष बीत गए हैं। अगर ये पहाड़ी खिसक गई तो उसके नीचे एक छोटी-सी नाली है उससे बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। 2013 में जो आपदा आई थी, सरकार द्वारा उसकी जाँच कराने का कोई ध्यान नही दिया गया। इसके निवारण के लिए सरकार द्वारा कुछ सुविधा या चेक डैम या वृक्षारोपण की व्यवस्था या सुरक्षा दिवार बनाई जाए। यह उम्मीद हम सरकार से करते है।
2013 की आपदा से पीड़ित, अपने घर-परिवार को ले कर चिंतित
सर नमस्कार, मै दुर्गा कोल झूलाघाट, जिला-पिथौरागढ़ से बोल रहा हूँ। झूलाघाट भी पंचेश्वर बांध के डूब क्षेत्र में आ रहा है। साहब, मैं 2013 से बेरोजगार और आपदा पीड़ित भी हूँ। मेरे इस मकान का क्या होगा ? मेरे रोजगार का क्या होगा ? मैं सरकारी रोजगार पाने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ? सरकार हमारी सुन नहीं रही है और हमें बेरोजगार कर रही है . हमको इससे (पंचेश्वर बांध से) क्या मिलेगा ? ये हमें कब रोजगार देंगे ? मेरा क्या होगा ? कोई तो सुने हमारी ?
महिलाएं आत्म-निर्भरता और पूर्ण विस्थापन का चिंतन करते हुए
यह सन्देश विमल देवी, शोभा देवी, जानकी देवी, बलबती देवी और शांति देवी द्वारा दिया गया है। मैं पहले CRPF में जॉब करती थी और अब मिठाई की दूकान चलाती हूँ। पंचेश्वर बांध के बारे में हम कहना चाहते हैं। अभी तक ये पता नही कि मुआवजा मिलेगा कि नहीं, रोज़गार भी मिलेगा कि नहीं। ये तो गलत है। या तो हमें पंचेश्वर बांध से ऐसी जगह विस्थापन करना चाहिए, जहां सहूलियतें हों, मुआवजा भी देना चाहिए । यह सब कुछ देना चाहिए तभी हम हटेंगे नहीं तो बिल्कुल यहाँ से नहीं हटेंगे । यह जगह हमारी जन्मभूमि है, यहाँ से जाना अच्छा नहीं लगेगा, मन नहीं मानेगा। अन्तः सरकार को भी चाहिए कि इन सब बातों का ध्यान रखते हुए मुआवजा और सम्पूर्ण विस्थापन पर विचार करे।
जन सुनवाई में पहुँचने की स्थिति में नहीं समुदाए
15-July-2017: – नमस्कार, मै ललित पंत, ग्राम तारागढ़ा, पोस्ट – सल्ला, तहसील-जिला – पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) से हूँ . जो ये पंचेश्वर बांध बनता है तो डूब क्षेत्र में है। डूब क्षेत्र के विस्थापन को लेकर स्थानीय निवासी चिंतित है। समाचार पत्रों में जनसुनवाई की भी चर्चा चल रही है , जनसुनवाई का स्थान जिले में रखा है। जिला डूब क्षेत्र से 40 किलो-मीटर की दुरी पर है। डूब क्षेत्र के लोग निर्धन और गरीब है, दूरी अधिक होने से जनसुनवाई में नही पहुँच सकते है। स्थानीय लोग चाहते है कि जनसुनवाई डूब क्षेत्र में हो, जिससे वह अपनी बात कह सके . जनसुनवाई में स्थानीय लोगो को भी शामिल किया जाय। हमारा स्वयं सेवी संस्थाओं से भी आग्रह है की ऐसी स्थिति में क्षेत्र वाशियों को मार्गदर्शन दे प्रधानमंत्री जी भी पंचेश्वर बाँध के बारे में चर्चा की थी . हम यह सन्देश प्रधानमंत्री जी के तक पहुँचाना चाहते है की जनसुनवाई में डूब क्षेत्र में ही हो। डूब क्षेत्र का ठीक से विस्थापन और जनसुनवाई में स्थानीय लोगो को भी शामिल करें। सुबिधा नही होने अधिकारी डूब क्षेत्र में नही आना चाहते है ,डूब क्षेत्र में सुबिधा न होने से डूब क्षेत्र से जा चुके है जो लोग अभी डूब क्षेत्र में रह रहे है अशिक्षित और निर्धन है वो लोग अपनी बात स्थानीय लोगो के माध्यम से ही रख सकते है। धन्यबाद
भावी परियोजना के चलते स्थानीय विकास के कार्य थामे, मुश्किलें बढ़ीं
नमस्कार मै ललित पंत, ग्राम तारागढ़ा पोस्ट -सल्ला तहसील-जिला – पिथौरागढ़ उत्तराखंड से हूँ . मैं पंचेश्वर डैम के बनने से डूब क्षेत्र में रहता हूँ। गाँव की समस्या मुख्य रूप से रोड और अस्पताल न होने से बीमार व्यक्ति को रोड में पहुचने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ता है , जो मुख्यतः 6-7 किलो मीटर का खडी चढ़ाई है। ग्राम में कक्षा 6 के बाद गाँव में स्कूल नही है .बच्चे 6-7 किलो मीटर की चढ़ाई करके स्कूल चलकर पहुंचते है या तो पढाई छोड़ देते है। गाँव में सभी लोग अशिक्षित है। साग-सब्जी फल-फूल अच्छी मात्र में होते है जो मुख्य रूप से कटहल ,केला ,आम ,अमरुद होता है जो रोड की सुविधा न होने से बाजार पर नही पहुँच पता है। जिसका गाँव वाले को कोई लाभ नही होता है। समय-समय पर पंचेश्वर बाँध की चर्चा चलती है। जिसके कारण टनकपुर-जौलजीवी का काम भी रुका है। पंचेश्वर बाँध की चर्चा न होती तो आज तक यह रोड पूरी बन जाती और क्षेत्र का विकास भी हो जाता है। अगर सरकार बांध ही बनाना चाहती है तो इसमें तेजी दिखाए ताकि गाँव का ठीक से विस्थापन हो और उचित व्यवस्था हो। अन्यथा बाँध नही बनता है तो सड़क निर्माण कराया जाए। गाँव के विकास का योगदान होगा। इस बात को लेकर लोंगो में काफी चिंता है कहाँ विस्थापन करेंगे और कहाँ व्यवस्था होगी। गाँव वाले से किसी अधिकारी या विभाग ने संपर्क नहीं किया। गाँव वाले इसी आशा में रहते है कभी तो हमारे गाँव तो जुड़ेगा। अधिक मात्रा में गाँव वाले रोड न होने से गाँव छोड़ चुके है। बड़ा दुःख होता है जब गाँव में बुजुर्ग माता-पिता ही घर की रखवाली करते है।